भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और बात / ओमप्रकाश सारस्वत

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 22 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | संग्रह=शब्दों के संपुट में / ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जहाँ आदमी
आदमी के खिलाफ
इस्तेमाल होने लग जाए
जहाँ मानव
पशुता ढोने लग जाए

वहाँ आदमी को आदमी
और् पशु को पशु कहना भी
बेमानी है

यह शब्दों को
शब्दों के मत्थे भर मारना है
अर्थहीन आत्मा की देह पर

आज जबकि शब्द
ब्रह्म होने को तैयार नहीं
तब मैं
अर्थ को कैसे रोक सकता हूँ

जबकि मैं
आपको भी तो टोक नहीं सकता कि
श्वानों के संग
बिस्तर पर खेलना और बात है
और मनुष्यों के साथ
धरती पर सोना और बात