भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लौटकर नहीं आऊँगा / केशव

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 22 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=अलगाव / केशव }} {{KKCatKavita}} <poem>जब तुम मुझे न...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तुम मुझे नहीं करना चाहोगी
और प्यार
चुपचाप उठकर चली जाओगी
करीब से
मुझे लगेगा
कि तुमने अक्सर कहा है जो
प्यार के धधकते क्षणों में
वह सब था मात्र भूख
तुम्हारे अंतस में
सपने की तरह जागा हुआ
आँखा खुलते ही जो
उतर गया विस्मृति के गह्वर में

पर फिर जब सपना करवट लेगा
तुम्हारे अन्दर
और रात कस लेगी तुम्हें
अपनी अजनबी गुंजलक में
तब तुम पुकारोगी-जान,प्राण
पर तुम्हारी पुकार नहीं पहुँचेगी
मेरे कानो तक
बीत चुका होगा अवसर
मैं लौट कर नहीं आऊँगा
और तुम रात की कोख में
छटपटाती रहोगी
जन्म के लिए