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क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी

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क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हैं पलकें
क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए

बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए

कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए

शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए


हिज्र = जुदाई, नमनाक = नमी से भरी, बड़े पाए के = धुरंधर