भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गंधाते शूल / तारादत्त निर्विरोध

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:13, 28 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झरते हैं फूल-पात
डाली से
गंधाते शूल हैं
मौसम की गाली से

एक नहीं गंध
एक नहीं राग-रंग,
सबके हैं खिलने के
अलग-अलग ढंग
वृक्षों के हालचाल
पूछें क्यों माली से

सूखे से कानन में
मलयज के गीत,
लगते बेमानी-से
अर्थहीन लय के
शब्दहीन-संगीत
चलता है कामकाज
अक्षरों के राज में

शब्दों के हल्लो से,
अर्थों की ताली से