भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दरमियाँ यूँ न फ़ासिले होते / चाँद शुक्ला हादियाबादी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 28 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} Category:गज़ल <poem> दरमियाँ यों न फ़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दरमियाँ यों न फ़ासिले होते
काश ऐसे भी सिलसिले होते

हमने तो मुस्करा के देखा था
काश वोह भी ज़रा खिले होते

ज़िन्दगी तो फ़रेब देती है
मौत से काश हम मिले होते

हम ज़ुबाँ पर न लाते बात उनकी
लब हमारे अगर सिले होते

अपनी हम कहते उनकी भी सुनते
शिकवे रहते न फिर गिले होते

काश अपने उदास आँगन में
फूल उम्मीद के खिले होते

रात का यह सफर हसीं होता
"चाँद", तारों के काफ़िले होते