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अपने तो हौसले निराले हैं / चाँद शुक्ला हादियाबादी

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अपने तो हौसले निराले हैं
आस्तीनों में सांप पाले हैं

बन न पाये वोह हमखयाल कभी
हम निवाले हैं हम पियाले हैं

कुछ अजब सा है रखरखाव उनका
तन के उजले हैं मन के काले हैं

जिन घरों की छतों में जाले हैं
उनके दिन कब बदलने वाले हैं

हैं दुआयें मेरे बुजुर्गों की
मेरे चारों तरफ उजाले हैं

दर्दे दिल का बयाँ करूँ किस से
जबकि सब के लबों पे ताले हैं