भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो जब अपनी ख़बर दे है / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 30 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> वो जब अपनी ख़बर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो जब अपनी ख़बर दे है
जहाँ भर का असर दे है

चुराकर कौन सूरज से
ये चंदा को नज़र दे है

है मेरी प्यास का रूतबा
जो दरिया में लहर दे है

कहाँ है जख़्म ओ मालिक
यहाँ मरहम किधर दे है

रगों में गश्त कुछ दिन से
कोई आठों पहर दे है

ज़रा-सा मुस्कुरा कर वो
नई मुझको उमर दे है

रदीफ़ो-काफ़िया निखरे
ग़ज़ल जब से बहर दे है