Last modified on 30 अगस्त 2009, at 23:59

तू जब से अल्लादिन हुआ / गौतम राजरिशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:59, 30 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> तू जब से अल्लाद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरागे-जिन हुआ

भूलूँ तुझे? ऐसा तो कुछ
होना न था, लेकिन हुआ

पढ़-लिख हुए बेटे बड़े
हिस्से में घर गिन-गिन हुआ

काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ

झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ

रूठा जो तू फिर तो ये घर
मानो झरोखे बिन हुआ

आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढब कमसिन हुआ