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मुखा़तिब हो मुकाबिल नहीं होती / शमशाद इलाही अंसारी

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मुखा़तिब हो मुकाबिल नहीं होती,
दिल की मुश्किल आम नहीं होती।

किससे क्या कहें कि दिल कुछ हल्का हो
उफ़ ये उम्र अब क्यों तमाम नहीं होती।

बडे़ खु़लूस से चला था कारवाँ उसकी तरफ़
ये और बात है कि सभी मंज़िले मुकाम नहीं होती।

इसी जुस्तजू में ज़िन्दगी मुक्कमिल हुई "शम्स"
कि एक उम्मीद के बाद उम्मीद हराम नहीं होती।


रचनाकाल: 15.07.2002