मेरे मन-मिरगा नहीं मचल
हर दिशि केवल मृगजल मृगजल!
प्रतिमाओं का इतिहास यही
उनको कोई भी प्यास नहीं
तू जीवन भर मंदिर-मंदिर
बिखराता फिर अपना दृगजल!
खौलते हुए उन्मादों को
अनुप्रास बने अपराधों को
निश्चित है बांध न पाएगा
झीने-से रेशम का आंचल!
भींगी पलकें भींगा तकिया
भावुकता ने उपहार दिया
सिर माथे चढा इसे भी तू
ये तेरी पूजा का प्रतिफल!