भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक (अश्वमेध) / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:15, 1 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ }} <...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घोड़ा नहीं जानता
अगली टाप पड़ते ही वह
पकड़ लिया जाएगा
और
हो जाएंगे धराशायी सैंकड़ों योद्धा
घोड़ा नहीं जानता।


घोड़े के लिए सारी घास है अपनी
वह नहीं जानता राजसी भाषा वेशभूषा
पकड़ लिए जाने से पहले
सब अपना है उसके लिए।

घोड़ा नहीं जानता
उसके आगे क्या है
कौन दौड़े आ रहे हैं उसके पीछे
वह नहीं जानता सीमाओं का भूगोल


घोड़ा नहीं जानता
उसके आगे क्या है
कौन दौड़ॆ आ रहे हैं उसके पीछे
वह नहीं जानता सीमाओं के भूगोल

नहीं जानता घोड़ा उसके पीछे
आ रही है सेना
उसके पीछे है अर्जुन भीम
या कर्ण विकर्ण
घोड़ा नहीं जानता।

नहीं जानता घोड़ा
जब उसे अश्व कहते हैं
तब अश्वमेध होता है
हर अश्वमेध से पहले नरमेध होता है।