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जंगल में अकेला / सुदर्शन वशिष्ठ

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जंगल में अकेला
भोला सिपही
छोटी-छ्ड़ी से ढूँढ रहा बम
डर जाता है उड़ने पर चिड़िया
सहम जाता है काँव-काँव से
बम होने का डर बैठा था मन में
बाहर से बहादुर बनता हुआ
डर-डर कर जीता है भोला सिपाही।

पूछ रहा आते जाते सैलानियों से----
'इधर किधर चले महाराज़।
ड्यूटी है क्या करें
पूछणा अच्छा तो नहीं लगता है"

छड़ी से ढूँढता हुआ बन
सोच रहा सिपाही
क्या डंगरों को पिलाया होगा पानी
बेटा गया होगा स्कूल
बेटी को किसने संभाला होगा!

तड़के से भटक रहा है
भोला सिपाही जंगल में
कल से उलझा है शांत वृक्षों में सूनी झाड़ियों में
फैला है दूर दूर तक
अपनी ड्यूटी सीमा से।

पीठ सुस्ताने पत्थर पर अधलेटा
जंगल मे सिपाही
जेब से निकालता बीड़ी'
सुलगाता तीली
तभी बारूद की गंध में
जंगल के आसमान में
चील सा उड़ने लगा है हैलिकैप्टर............
चिल्लाए कौए
सहमें पक्षी
सहमा सिपाही
सावधान हुआ
पहुँच गया कोई वी.वी.आई.पी.
नहीं जानता वह हैलिकॉप्टर में उड़ने वालो को
करीब से नहीं देखा कभी
नहीं है उनसे कोई नाता रिश्ता
फिर भी
सावधान हो जाता है भोला सिपाही
चालाक लोगों की रक्षा में
कवच सा डटा।