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तुम / मनीष मिश्र
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मैं देखता हूँ तुम्हारे हाथ
चटख नीली नसों से भरे
और
उंगलियों में भरी हुई उड़ान
मैं सोचता हूँ
तुम्हारी अनाव्रत देह की सफ़ेद धूप
और उसकी गर्म आँच
मैं जीत्ताता हूँ तुमको
तुम्हारे व्याकरण और
नारीत्व की शर्तो के साथ
मैं हारता हूँ
एक पूरी उम्र
तुम्हारी एवज में!