भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपने / संगीता मनराल
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:43, 10 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= संगीता मनराल |संग्रह= }} <Poem> जिन चीटियों को पैरों ...)
जिन चीटियों को
पैरों तले
दबा दिया था
मैंने
कभी अनजाने में
वो अक्सर
मुझे मेरे
सपनों मे आकर
काटतीं हैं
उनके डंक
पूरे शरीर मे
सुई से चुभकर
सुबह तक
देह के हर
हिस्से को
सूजन मे
तबदील कर देते हैं
ऐसा अक्सर
होने लगा है आजकल
पता नहीं क्यों....?