भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो हवा में है / उमाशंकर तिवारी
Kavita Kosh से
जो हवा में है, लहर में है
क्यों नहीं वह बात मुझमें है
शाम कन्धे पर लिये अपने
जिन्दगी के रू ब रू चलना
रोशनी का हमसफर होना
उम्र की कन्दील क जलना
आग जो जलते सफ़र में है
क्यों नहीं वह बात मुझमें है।