भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सोये हैं पेड़ / माहेश्वर तिवारी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:39, 11 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} <poem> कुहरे में सोये हैं पेड़ पत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुहरे में सोये हैं पेड़
पत्ता पत्ता नम है
यह सबूत क्या कम है

लगता है
लिपट कर टहनियों से
बहुत बहुत
रोये हैं पेड़

जंगल का घर छूटा
कुछ कुछ भीतर टूटा
शहरों में
बेघर होकर जीते
सपनों में खोये हैं पेड़