लो वही हुआ जिसका था ड़र
ना रही नदी, ना रही लहर।
सूरज की किरन दहाड़ गई
गरमी हर देह उघाड़ गई
उठ गया बवंड़र, धूल हवा में
अपना झंडा़ गाड़ गई
गौरइया हाँफ रही ड़र कर
ना रही नदी, ना रही लहर।
लो वही हुआ जिसका था ड़र
ना रही नदी, ना रही लहर।
सूरज की किरन दहाड़ गई
गरमी हर देह उघाड़ गई
उठ गया बवंड़र, धूल हवा में
अपना झंडा़ गाड़ गई
गौरइया हाँफ रही ड़र कर
ना रही नदी, ना रही लहर।