कृपाचार्य -   	यह क्या किया,
अश्वत्थामा।
यह क्या किया? 
अश्वत्थामा - 	पता नहीं मैंने क्या किया,
मातुल मैंने क्या किया!
क्या मैंने कुछ किया?
कृतवर्मा -   	कृपाचार्य
भय लगता है
मुझको
इस अश्वत्थामा से! 
(कृपाचार्य अश्वत्थामा को बिठाकर, उसका कमरबन्द ढीला करते हैं। माथे का पसीना पोंछते हैं।) 
कृपाचार्य - 	बैठो
विश्राम करो
तुमने कुछ नहीं किया
केवल भयानक स्वप्न देखा है! 
अश्वत्थामा -   	मैं क्या करूँ
मातुल!
वध मेरे लिए नहीं नीति है,
वह है अब मनोग्रन्थि!
इस वध के बाद
मांसपेशियों का सब तनाव
कहते क्या इसी को हैं
अनासक्ति?' 
कृपाचार्य -   	(अश्वत्थामा को लिटा कर)
सो जाओ!
कहा है दुर्योधन ने
जाकर विश्राम करो
कल देखेंगे हम
पांडवगण क्या करते हैं -
करवट बदल कर
तुम सो जाओ
(कृतवर्मा से)
सो गया। 
कृतवर्मा -   	(व्यंग्य से)
सो गया।
इसलिए शेष बचे हैं हम
इस युद्ध में
हम जो योद्धा थे
अब लुक-छिप कर
बूढ़े निहत्थों का
करेंगे वध। 
कृपाचार्य -  	शान्त रहो कृतवर्मा
योद्धा नामधारियों में
किसने क्या नहीं
किया है
अब तक?
द्रोण थे बूढ़े निहत्थे
पर 
छोड़ दिया था क्या
उनको धृष्टद्युम्न ने?
या हमने छोड़ा अभिमन्यु को
यद्यपि वह बिलकुल निहत्था था
अकेला था
सात महारथियों ने...
अश्वत्थामा -   	मैंने नहीं मारा उसे
मैं तो चाहता था वध करना भविष्य का
पता नहीं कैसे वह
बूढ़ा मरा पाया गया।
मैंने नहीं मारा उसे
मातुल विश्वास करो। 
कृपाचार्य - 	सो जाओ
सो जाओ कृतवर्मा!
पहरा मैं देता रहूँगा आज रात भर।
(वे लौटते हैं। पर्दा गिरने लगता है।) 
जिस तरह बाढ़ के बाद उतरती गंगा
तट पर तज आती विकृति, शव अधखाया
वैसे ही तट पर तज अश्वत्थामा को
इतिहासों ने खुद नया मोड़ अपनाया
वह छटी हुई आत्माओं की रात
यह भटकी हुई आत्माओं की रात
यह टूटी हुई आत्माओं की रात
इस रात विजय में मदोन्मत्त पांडवगण
इस रात विवश छिपकर बैठा दुर्योधन
यह रात गर्व में
तने हुए माथों की 
यह रात हाथ पर
धरे हुए हाथों की
(पटक्षेप)