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तुम क्या जानो हम क्या जानें / निर्मला जोशी

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<poet> तुम क्या जानो हम क्या जानें क्या हुआ क्या नहीं हुआ है हाँफ रहा है समय बेचारा सुनो, किसी की यही दुआ है

रंगहीन हो गई दिशाएँ बहती है विपरीत हवाएँ गीत बेसुरे जाने क्यों हैं पिंजरे में सो रहा सुआ है तुम क्या जानो हम क्या जानें क्या हुआ क्या नहीं हुआ है

मन-सितार औंधा लेटा है देह राग रोता गाता है नहीं उभरते चित्र कहीं भी जाने क्या अपशकुन हुआ है तुम क्या जानो हम क्या जानें क्या हुआ क्या नहीं हुआ है

नदिया- नदिया सूखा पानी अम्मा की छूटी गुड़धानी गाँव गाँव घुस गया शहर है जाने किसने इन्हें छुआ है तुम क्या जानो हम क्या जानें क्या हुआ क्या नहीं हुआ है </poet>