Last modified on 13 सितम्बर 2009, at 13:19

पर्वत नदियाँ हरियाली / निर्मला जोशी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मला जोशी }} <poem> पर्वत, नदियां हरियाली से बतिय...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पर्वत, नदियां हरियाली से बतियाता है, गांव।
अक्षत, रोली, फूल द्वार पर रखना अपने पांव।

हवा बहन गाती है कुछ-कुछ
सदा सगुन के गीत।
गंध-सुगंध बिखेर दिशाएं
झरती झर-झर प्रीत।
नरियल की कतरन भर लाती है बर्फानी नांव।

कुहरे की निंदिया जब टूटे
फुनगी तार उलीचे।
सूरज का श्रृंगार हृदय में
जैसे अमृत सींचे।
सिहर उठा तन हार गया जीवन मौसम के दांव।

मंद-मंद झरनों की वाणी
रूक-रूक कर कहती है।
कभी परखना करूणा
कितनी अंतस में रहती है।
बरगद के वंशज युग-युग से बाट रहे हैं छांव।
अक्षत, रोली, फूल द्वार पर रखना अपने पांव।