भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तकदीर का फसाना जाकर किसे सुनाएं / हसरत जयपुरी

Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:15, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तक़दीर का फसाना जाकर किसे सुनाएँ
इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएँ ।।

सांसों में आज मेरे तूफ़ान उठ रहे हैं
शहनाईयों से कह दो कहीं और जाकर गायें
इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएँ ।।

मतवाले चाँद सूरज, तेरा उठायें डोला
तुझको खुशी की परियां घर तेरे लेके जाएँ
इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएँ ।।

तुम तो रहो सलामत, सेहरा तुम्हें मुबारक
मेरा हरेक आँसू देने लगा दुआएँ
इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएँ ।।