Last modified on 13 सितम्बर 2009, at 20:36

पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव }} {{KKCatKavita‎}} <poem> तुम एक फूल को सूँघ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम एक फूल को सूँघते हो
तो यह उस फूल की महक है

शब्दों की महक से
गमकता है काग़ज़ का हृदय

कस्तूरी की महक से जंगल

और मनुष्य की महक से धरती

धरती की महक मनुष्य की महक से बड़ी है
मगर धरती स्वयं
मनुष्य की महक और आवाज़ और स्वप्न
से बनी है

दिन-ब-दिन राख हो रही इस दुनिया में
जो चीज़ हमे बचाये रखती है
वह केवल मनुष्य की महक है

और केवल पत्तों के हिलने की आवाज़