भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वसंती दोहे / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 14 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम }} <poem> गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल...)
गोरी धूप कछार की हम सरसों के फूल।
जब-जब होंगे सामने तब-तब होगी भूल।।
लगे फूँकने आम के बौर गुलाबी शंख।
कैसे रहें किताब में हम मयूर के पंख।।
दीपक वाली देहरी तारों वाली शाम।
आओ लिख दूँ चंद्रमा आज तुम्हारे नाम।।
हँसी चिकोटी गुदगुदी चितवन छुवन लगाव।
सीधे-सादे प्यार के ये हैं मधुर पड़ाव।।
कानों में जैसे पड़े मौसम के दो बोल।
मन में कोई चोर था भागा कुंडी खोल।।
रोली अक्षत छू गए खिले गीत के फूल।
खुल करके बातें हुई मौसम के अनुकूल।।
पुल बोए थे शौक से, उग आई दीवार।
कैसी ये जलवायु है, हे मेरे करतार।।