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भर देते हो / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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भर देते हो बार-बार, प्रिय, करुणा की किरणों से क्षुब्ध हृदय को पुलकित कर देते हो। मेरे अन्तर में आते हो, देव, निरन्तर, कर जाते हो व्यथा-भाल लधु बार-बार कर-कंज बढ़ाकर; अंधकार में मेरा रोदन सिक्त धरा के अंचल को करता है क्षण-क्षण- कुसुम-कपोलों पर वे लोल शिशिर-कण तुम किरणों से अश्रु पोंछ लेते हो, नव प्रभात जीवन में भर देते हो।