भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चंदन गंध / रमानाथ अवस्थी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 15 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमानाथ अवस्थी }} <poem> चंदन है तो महकेगा ही आग में हो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चंदन है तो महकेगा ही
आग में हो या आँचल में

छिप न सकेगा रंग प्यार का
चाहे लाख छिपाओ तुम
कहने वाले सब कह देंगे
कितना ही भरमाओ तुम
घुंघरू है तो बोलेगा ही
सेज में हो या सांकल में

अपना सदा रहेगा अपना
दुनिया तो आनी जानी
पानी ढूँढ़ रहा प्यासे को
प्यासा ढूँढ़ रहा पानी
पानी है तो बरसेगा ही
आँख में हो या बादल में

कभी प्यार से कभी मार से
समय हमें समझाता है
कुछ भी नहीं समय से पहले
हाथ किसी के आता है
समय है तो वह गुज़रेगा ही
पथ में हो या पायल में

बड़े प्यार से चाँद चूमता
सबके चेहरे रात भर
ऐसे प्यारे मौसम में भी
शबनम रोई रात भर
दर्द है तो वह दहके गा ही
घन में हो या घानल में