भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आख़िरी हिलोर तक / अभिज्ञात

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> छलक आया प्यार मेरा अब दृगों के कोर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छलक आया प्यार मेरा
अब दृगों के कोर तक
आ सको यदि
आ भी जाओे, कौन जाने
सांस की लडि़यां बिखर जाएं
सुहानी भोर तक!!

भाल पर तेरे, मेरे
चुम्बन का कुमकुम तो लगे
एक वह अभिसार बेला
लाख पूनम को ठगे
कान में तुम कुछ मेरे
ऐसा कहो
ठहर जाए इस हृदय की
धड़कनों का शोर तक!

डूबना यदि नियति मेरी
तो शिकायत भी नहीं
और की बाहें गहूँ
इतनी जरूरत भी नहीं
पार उतरूंगा तुम्ही से
आ मिलो,
मुझे राह तकनी है तुम्हारी
आखिरी हिलोर तक!