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याद किसी की चाँदनी बन कर / बशीर बद्र
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याद किसी की चांदनी बन कर कॊठॆ कॊठॆ उतरी है
याद किसी की धूप हुई है ज़ीना ज़ीना उतरी है
रात की रानी शानॆ चमन मॆ गॆसू खॊल कॆ सॊती है
रात बॆ रात उधर् मत जाना इक् नागिन भी रहती है
तुमकॊ क्या गज़लॆ कह कर अपनी आग बुझा लॊगॆ
उसकॆ जी सॆ पूछॊ जॊ पत्थर की तरह चुप रहती है
मुद्दत सॆ एक लडकी कॆ रुखसार की धूप नही आई
इसी लिए मॆरॆ कमरॆ मॆ इतनी ठडक रहती है