भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्वीर और दर्पन / कन्हैयालाल नंदन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन }} <poem> कुछ कुछ हवा और कुछ मेरा अपन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ कुछ हवा
और कुछ
मेरा अपना पागलपन
जो तस्वीर बनाई
उसने
तोड़ दिया दर्पन।

जो मैं कभी नहीं था
वह भी
दुनिया ने पढ़ डाला
जिस सूरज को अर्घ्य चढ़ाए
वह भी निकला काला
हाथ लगीं- टूटी तस्वीरें
बिखरे हुए सपन!

तन हो गया
तपोवन जैसा
मन
गंगा की धारा
डूब गए सब काबा-काशी
किसका करूँ सहारा
किस तीरथ
अब तरने जाऊँ?
किसका करूँ भजन?
जो तस्वीर...