भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उलझनें / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>कई उलझने हैं .. कई रोने क...)
कई उलझने हैं ..
कई रोने के बहाने हैं ...
कई उदास बातें हैं ..
कई तन्हा रातें हैं ..
पर ..पर ....
जब भी तेरी नजरें मेरी नजरो से
तेरी धड़कने मेरी धडकनों से
और तेरी उँगलियाँ मेरी ऊँगलियों से
उलझ जाती है ..........
तो सारी उलझने
सारी उदास बातें ,तन्हा रातें
ना जाने कैसे खुद बा खुद सुलझ जाती है ..