Last modified on 17 सितम्बर 2009, at 00:27

सर्द ठण्डी रातों में / रंजना भाटिया

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>सर्द ठंडी रातों में नग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सर्द ठंडी रातों में
नग्न अँधेरा ,
एक भिखारी सा..
यूं ही इधर उधर डोलता है
तलाशता है ,एक गर्माहट
कभी बुझते दिए की रौशनी में
कभी कांपते पेडों के पत्तों में
कभी खोजता है कोई सहारा
टूटे हुए खंडहरों में ,
या फ़िर टूटे दिलों में
कुछ सुगबुगा के अपनी
ज़िंदगी गुजार देता है
यह अँधेरा कितना बेबस सा
यूं थरथराते ठंड के साए में
बन के याचक सा
वस्त्रों से हीन
राते काट लेता है !!