भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ जाएँ / हरीश निगम

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:16, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश निगम }} <poem> पथराया नेहों का टाल कहाँ जाएँ गल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पथराया नेहों का टाल कहाँ जाएँ
गली-गली फैले हैं जाल
कहाँ जाएँ

देख-देख मौसम के धोखे
बंद किए हारकर झरोखे
बैठे हैं
अंधियारे पाल
कहाँ जाएँ

आए ना रंग के लिफ़ाफ़े
बातों के नीलकमल हाफे
मुरझाई
रिश्तों की डाल
कहाँ जाएँ

कुहरीला देह का नगर है
मन अपना एक खंडहर है
सन्नाटे
खा रहे उबाल
कहाँ जाएँ?