भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँदनी सिसकी / हरीश निगम
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश निगम }} <poem> रात भर जागे सिरहाने नींद धर के। ए...)
रात भर जागे
सिरहाने नींद धर के।
एक पल को भी नहीं
पतझड़ थमा
आँख में होते रहे
बीहड़ जमा
याद ने किस्से सुनाए
खंडहर के।
चाँदनी सिसकी
कोई सपना दुखा
सिलसिला हम पर
खरोंचों का झुका
लग रहा,
आए बबूलों से गुज़र के।