भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुनगियों तक बेल / हरीश निगम
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश निगम }} <poem> फुनगियों तक बेल चढ़ आई! बादलों को ...)
फुनगियों तक
बेल चढ़ आई!
बादलों को
टेरती
होती सिंदूरी
देह सौगंधों हरी
मन की मयूरी
इंद्रधनु के
पत्र पढ़ आई!
दूब-अक्षत
फूल खुशबू
धूप गाती
सप्तपदियाँ घोलती
पायल बजाती
नेह के
सौ बिंब गढ़ आई!