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गाँव का महाजन / केदारनाथ अग्रवाल
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वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन,
गौरव के गोबर-गनेश-सा मारे आसन,
नारिकेल-से सिर पर बाँधे धर्म-मुरैठा,
ग्राम-बधूटी की गौरी-गोदी पर बैठा,
नागमुखी पैतृक सम्पति की थैली खोले,
जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले,
ब्याज-स्तुति से बाँट रहा है रूपया-पैसा,
सदियों पहले से होता आया है ऐसा!!
सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को,
मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन दीनों को,
इन दीनों के ऋण का रोकड़-कांड बड़ा है,
अब भी किन्तु अछूता शोषण-कांड पड़ा है।