Last modified on 18 सितम्बर 2009, at 19:31

कब आओगे नगरी मेरी / शार्दुला नोगजा

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem> कल बड़े दिनों के बाद सजन आँख...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कल बड़े दिनों के बाद सजन
आँखों में ना डाला अंजन
सोचा वंशीधर आएँगे
तो पग काले हो जाएँगे।

फिर रात, प्रात:, संध्या बीतीं
आहट से रही ह्रदय सीती
कब आओगे नगरी मेरी
आँखे सूनी, देह की देहरी।