भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्यार सबकुछ / शांति सुमन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह= }} <poem> मुझमें अपनापन बोता है सा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझमें अपनापन बोता है
सांझ-सकारे यह मेरा घर

उगते ही सूरज के-
रोशनदान बांटते ढेर उजाले
धूपों के परदे में
खिल-खिल उठते हैं खिड़की के जाले
चिडि़यों का जैसे खोता है
झिन-झिन बजता है कोई स्वर

एक हंसी आंगन से उठती
और फैल जाती तारों पर
मन की सारी बात लिखी हो
जैसे उजली दीवारों पर
एक प्यार सबकुछ होता है
जिससे डरते हैं सारे डर

दरवाज़े पर सांकल मां की
आशीषों से भरी उंगलियां
पिता कि जैसे बाम-फूटती
एक स्वप्न में सौ-सौ किलयां
जहां परायापन रोता है
लुक-छिप खुशी बांटती मन भर