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धूप तितलियों वाले दिन / शांति सुमन

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एक अधूरा गीत
अंतरा लिए सुलगता है

बरगद की छांहों में जब
उठती मृदंग की थापें
बीच गांव के टोले में
रचती हल्दी की छापें
कोई मीठा परस हवा का
मन में जगता है

धूप तितिलयों वाले दिन
कब बीत गए होते
पानी की सीढि़यां नापते
रीत गए होते
पर उदास मन में अब भी
एक सूरज उगता है

दूर उड़ाने भरने वाली
चिडि़यों की आंखें
बान लगे हिरना की आंखें
हिरनी गुमसुम ताके
जो बीता दिन में देखा
एक सपना लगता है