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फूल कदंब / शशि पाधा

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उमड़े काले मेघा नभ में
खिल खिल आया फूल कदम्ब,
देख के महुआ की मुस्कान
मुस्काया अब फूल कदम्ब।

सूरज ने रंग दी पंखुरियाँ
शीत पवन ने भेजी गन्ध,
पात-पात में बजी बाँसुरी
दिशा-दिशा झरता मकरन्द

सावन के भीगे संदेसे,
ले कर आया फूल कदम्ब।

स्वर्णिम आनन, रक्तिम आभ
केसर कलियाँ कोमल अँग,
वृन्दावन की कुन्ज गली में
राधा यों सखियों के संग।

अब जानूँ क्यों कृष्णा के मन
इतना भाया फूल कदम्ब।

चम्पा और चमेली पूछें
कहाँ से पाई सौरभ सुषमा,
अमलतास भी छू कर कहता
देखी कभी न ऐसी ऊष्मा।

प्रेम रंग में रंग कर देखो,
हँस कर कहता फूल कदम्ब।