Last modified on 4 नवम्बर 2006, at 07:29

तुम तूफान समझ पाओगे / हरिवंशराय बच्चन

अनूप.भार्गव (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 07:29, 4 नवम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कवि: हरिवंशराय बच्चन

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

गीले बादल, पीले रजकण,

सूखे पत्ते, रूखे तृण घन

लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे ?

गंध-भरा यह मंद पवन था,

लहराता इससे मधुवन था,

सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे ?


तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,

नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,

जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !

तुम तूफान समझ पाओगे ?