Last modified on 21 सितम्बर 2009, at 02:17

कहाँ / महादेवी वर्मा

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:17, 21 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=नीहार / महादेवी वर्मा }} <poem> ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

घोर घन की अवगुण्ठन ड़ाल
करुण सा क्या गाती है रात?
दूर छूटा वह परिचित कूल
कह रहा है यह झंझावात,

लिए जाते तरणी किस ओर
अरे मेरे नाविक नादान!

हो गया विस्मृत मानवलोक
हुए जाते हैं बेसुध प्राण,
किन्तु तेरा नीरव संगीत
निरन्तर करता है आह्वान;

यही क्या है अनन्त की राह
अरे मेरे नाविक नादान?