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मेरा एकान्त / महादेवी वर्मा

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कामना की पलकों में झूल
नवल फूलों के छूकर अंग,
लिए मतवाला सौरभ साथ
लजीली लतिकाएं भर अंक,

यहाँ मत आओ मत्त समीर!
सो रहा है मेरा एकान्त!

लालसा की मदिरा में चूर
क्षणिक भंगुर यौवन पर भूल,
साथ लेकर भौरों की भीर
विलासी हे उपवन के फूल!

बनाओ इसे न लीला भूमि
तपोवन है मेरा एकान्त!

निराली कल कल में अभिराम
मिलाकर मोहक मादक गान,
छलकती लहरों में उद्दाम
छिपा अपना अस्फुट आह्वान,

न कर हे निर्झर! भंग समाधि
साधना है मेरा एकांत!

विजन वन में बिखरा कर राग
जगा सोते प्राणों की प्यास,
ढालकर सौरभ में उन्माद
नशीली फैलाकर निश्वास,

लुभाओ इसे न मुग्ध बसंत!
विरागी है मेरा एकान्त!

गुलाबी चल चितवन में बोर
सजीले सपनों की मुस्कान,
झिलमिलाती अवगुण्ठन ड़ाल
सुनाकर परिचित भूली तान,

जला मत अपना दीपक आश!
न खो जाये मेरा एकान्त!