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गोश्त बस / संध्या गुप्ता
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वह काला चील्ह...!!
क्या तुमने देखा नहीं उसे...
जाना नहीं...??
है बस काला...
सर से पाँव तक...
फैलाये अपने बीभत्स पंख काले
शून्य में मंडराता रहता है
इधर-उधर
गोश्त की आस में
आँखों को मटमटाता
अवसर की ताक में....
चाहिये उसे गोश्त बस
...लबालब ख़ून से भरा
नर हो या मादा
शिशु हो नन्हा-सा
या कोई पालतू पशु ही
काला हो या उजला
हो लाल या मटमैला
उसे चाहिये गोश्त बस!