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परिचय / महादेवी वर्मा

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जिसमें नहीं सुवास नहीं जो
करता सौरभ का व्यापार,
नहीं देख पाता जिसकी
मुस्कानों को निष्ठुर संसार;

जिसके आँसू नहीं माँगते
मधुपों से करुणा की भीख,
मदिरा का व्यवसाय नहीं
जिसके प्राणों ने पाया सीख;

मोती बरसे नहीं न जिसको
छू पाया उन्मत्त बयार,
देखी जिसने हाट न जिस पर
ढुल जाता माली का प्यार;

चढा न देवों के चरणों पर
गूँथा गया न जिसका हार,
जिसका जीवन बना न अबतक
उन्मादों का स्वप्नागार।

निर्जन वन के किसी अँधेरे
कोने में छुपकर चुपचाप,
स्वप्नलोक की मधुर कहानी
कहता सुनता अपने आप।

किसी अपरिचित डाली से
गिरकर जो नीरस जंगली फूल;
फिर पथ में बिछकर आँखों में
चुपके से भर लेता धूल।

उसी सुमन सा पलभर हँसकर
सूने में हो छिन्न मलीन,
झड़ जाने दो जीवन-माली!
मुझको रहकर परिचयहीन!