भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक नीम-मंजरी / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:22, 24 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> एक नीम-मंजरी मे...)
एक नीम-मंजरी
मेरे आँगन झरी
काँप रहे लोहे के द्वार।
आज गगन मेरे घर झुक गया
भटका-सा मेघ यहाँ रुक गया
रग-रग में थरथरी
सन्नाटा आज री
रहा मुझे नाम ले पुकार।
एक बूँद में समुद्र अँट गया
एक निमिष में समय सिमट गया
वायु-वायु बावरी
किसकी है भाँवरी
साँस-साँस बन रही फुहार।