भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 26 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन!


जब रजनी के सूने क्षण में,

तन-मन के एकाकीपन में

कवि अपनी विह्वल वाणी से अपना व्‍याकुल मन बहलाता,

त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन!


जब उर की पीड़ा से रोकर,

फिर कुछ सोच-समझ चुप होकर

विरही अपने ही हाथों से अपने आँसू पोछ हटाता,

त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन!


पंथी चलते-चलते थककर

बैठ किसी पथ के पत्‍थर पर

जब अपने ही थकित करों से अपना विथकित पाँव दबाता,

त्राहि, त्राहि कर उठाता जीवन!