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छाया पास चली आती है / हरिवंशराय बच्चन

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छाया पास चली आती है!

जड़ बिस्तर पर पड़ा हुआ हूँ,
तम-समाधि में गड़ा हुआ हूँ;
तन चेतनता-हीन हुआ है, साँस महज चलती जाती है!
छाया पास चली आती है!

तन सफ़ेद है, पट सफ़ेद है,
अंग-अंग में भरा भेद है,
निकट खिसकती देख इसे धकधक करती मेरी छाती है!
छाया पास चली आती है!

हाथों में कुछ है प्याला-सा,
प्याले में कुछ है काला-सा,
जान गया क्या मुझे पिलाने यह साकीबाला लाती है!
छाया पास चली आती है!