भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्मल वर्मा की कहानियाँ-2 / मनीष मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:12, 27 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये आपको भरती नहीं हैं
ये सब कुछ उलीच देती हैं

ये जाती हैं आपके जगमग पड़ोस में
और रख आती हैं एक सुगबुगाता मौन

ये दुख और मौन के विलक्षण अरण्य में भटकती हैं
ये देती जन्म एक शुरूआत को

जब ये ख़त्म होती हैं