Last modified on 27 सितम्बर 2009, at 18:47

यह अनुचित माँग तुम्हारी है / हरिवंशराय बच्चन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:47, 27 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |संग्रह=एकांत-संगीत / हरिवंशरा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह अनुचित माँग तुम्हारी है!

रोएँ-रोएँ तन छिद्रित कर
कहते हो, जीवन में रस भर!
हँस लो असफलता पर मेरी, पर यह मेरी लाचारी है।
यह अनुचित माँग तुम्हारी है!

कोना-कोना दुख से उर भर,
कहते हो, खोल सुखों के स्वर!
मानव की परवशता के प्रति यह व्यंग तुम्हारा भारी है।
यह अनुचित माँग तुम्हारी है!

समकक्षी से परिहास भला,
जो ले बदला, जो दे बदला,
मैं न्याय चाहता हूँ केवल जिसका मानव अधिकारी है।
यह अनुचित माँग तुम्हारी है!