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कोई नहीं, कोई नहीं / हरिवंशराय बच्चन
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कोई नहीं, कोई नहीं!
यह भूमि है हाला-भरी,
मधुपात्र-मधुबाला-भरी,
ऐसा बुझा जो पा सके मेरे हृदय की प्यास को-
कोई नहीं, कोई नहीं!
सुनता, समझता है गगन,
वन के विहंगों के वचन,
ऐसा समझ जो पा सके मेरे हृदय- उच्छ्वास को-
कोई नहीं, कोई नहीं!
मधुऋतु समीरण चल पड़ा,
वन ले नए पल्लव खड़ा,
ऐसा फिरा जो लासके मेरे लिए विश्वास को-
कोई नहीं, कोई नहीं!