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मिट्टी दीन कितनी, हाय / हरिवंशराय बच्चन

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मिट्टी दीन कितनी, हाय!


हृदय की ज्‍वाला जलाती,

अश्रु की धारा बहाती,

और उर-उच्‍छ्वास में यह काँपती निरुपाय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!


शून्‍यता एकांत मन की,

शून्‍यता जैसे गगन की,

थाह पाती है न इसका मृत्तिका असहाय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!


वह किसे दोषी बताए,

और किसको दुख सुनाए,

जब कि मिट्टी साथ मिट्टी के करे अन्‍याय!

मिट्टी दीन कितनी, हाय!